Wednesday, March 7, 2018

अनकही




हम बताते भी बहुत हैं 
और छुपाते भी बहुत हैं 
बताते हैं अपने हालात,
छुपाते हैं अपने जज़्बात ।



हम बेशर्म भी बहुत हैं 
और शर्माते भी बहुत हैं 
बेशर्मी हमारे बोलने में है 
शर्म हमारी आंखों में है ।

हम में प्यार भी बहुत है 
और नफरत भी बहुत है
प्यार परायों के लिए है 
नफरत अपनों के लिए ।

हम हारे हुए भी बहुत हैं
और जीते हुए भी बहुत हैं 
हारे है  पल पल ज़िन्दगी से
जीते हैं कतरा कतरा मरते हुए खुद से ।

हम रोये भी बहुत हैं 
और हँसे भी बहुत हैं 
रोये हैं अपनी मजबूरियों पर 
हँसे हैं अपनी खुदगर्ज़ी पर ।

हम सच्चे भी बहुत हैं 
और झूठे भी बहुत हैं 
सच हम दूसरों से बोलते हैं 
और झूठ खुद से ।

हम खुश भी बहुत हैं 
और दुखी भी बहुत हैं 
खुश अपनी उड़ान पर हैं
दुखी चुकाई हुई कीमत पर हैं ।

हम मरे भी बहुत हैं 
और ज़िंदा भी बहुत हैं
मरे अपनी नींदों में हैं 
ज़िंदा लोगों के दिलों में हैं ।



                                                                     -कुमार

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