हम बताते भी बहुत हैं
और छुपाते भी बहुत हैं
बताते हैं अपने हालात,
छुपाते हैं अपने जज़्बात ।
हम बेशर्म भी बहुत हैं
और शर्माते भी बहुत हैं
बेशर्मी हमारे बोलने में है
शर्म हमारी आंखों में है ।
हम में प्यार भी बहुत है
और नफरत भी बहुत है
प्यार परायों के लिए है
नफरत अपनों के लिए ।
हम हारे हुए भी बहुत हैं
और जीते हुए भी बहुत हैं
हारे है पल पल ज़िन्दगी से
जीते हैं कतरा कतरा मरते हुए खुद से ।
हम रोये भी बहुत हैं
और हँसे भी बहुत हैं
रोये हैं अपनी मजबूरियों पर
हँसे हैं अपनी खुदगर्ज़ी पर ।
हम सच्चे भी बहुत हैं
और झूठे भी बहुत हैं
सच हम दूसरों से बोलते हैं
और झूठ खुद से ।
हम खुश भी बहुत हैं
और दुखी भी बहुत हैं
खुश अपनी उड़ान पर हैं
दुखी चुकाई हुई कीमत पर हैं ।
हम मरे भी बहुत हैं
और ज़िंदा भी बहुत हैं
मरे अपनी नींदों में हैं
ज़िंदा लोगों के दिलों में हैं ।
-कुमार
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