टूट के हर बार बिखर जाती है
जिंदगी की माला
मैं फिर संभालता हूँ
पिरोता हूँ एक एक मोती ।
वो रूठती है, हर बार
मैं मनाता हूँ
इसी जद्दोजहद मे
थक कर बैठ जाता हूँ
फिर से उठता हूँ
संभलता हूँ, मनाता हूँ ।
शायद नाराज है मुझसे
पर कहती नहीं कुछ भी
जख्म अपने
छुपाती है,
दिखाती नहीं फिर भी ।
उम्मीद है, एक दिन
रूबरु होगी मुझसे
बैठेंगे, सुनाएंगे
किस्से और कहानियां
भूलेंगे शिकवे
सुलझेंगी परेशानियां ॥
- कुमार
No comments:
Post a Comment