इस ज़माने के तौर तरीके
कुछ यूँ सीख रहा हूँ मैं
नोट के बदले वोट बदले
वोट की खातिर इंसान को हैवान बनते
देख रहा हूँ मैं।
गाढ़ा था जो मेहनत से उनकी
उस लहू में पानी मिलते देख रहा हूँ मैं।
क्षणभंगुर था जो नील गगन में
उस श्वेत बदली को रोता देख रहा हूँ मैं।
सिंचित था जो संस्कारों से
उस उपवन को उजड़ते देख रहा हूँ मैं
अविरल बहती धारा को
ठहरकर सड़ते देख रहा हूँ मैं।
देख चंद टुकड़े कागज़ के
नियत बदलते देख रहा हूँ मैं ।
रंग बिरंगे कागज़ की खातिर
अपनों को पराया होते देख रहा हूँ मैं।
थी गवाह जो मासूम बचपन की
उन आँखों का पानी मरते देख रहा हूँ मैं।
इस ज़माने के तौर तरीके
कुछ यूँ सीख रहा हूँ मैं ।
- कुमार
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