तू सूरज की लाली जैसी
में रात चांदनी लिखता हूँ ,
तू नहीं मेरे जैसी
पर मैं कुछ कुछ तुझसा हूँ ।
तू कर्ण प्रिय सुरों की स्वामिनी
में बेसुरी कव्वाली लिखता हूँ,
प्यास जो दरिया की बुझा दे
मैं उस नदिया का पानी हूँ ।
पुष्प है तू हरित उपवन का
में भूमि बंजर लिखता हूँ ,
प्रेम सरिता है , दिल में तेरे जो
मैं उसका अधिकारी हूँ ।
प्रज्ञा है तू महाकाव्य की
में जड़ बुद्धि लिखता हूँ,
दिल में जमे हिम को पिघला दे
मैं ऐसी चिंगारी हूँ ।
देवी है तू उजियारे की
मैं रातगामिनी लिखता हूँ,
तू नहीं मेरे जैसी
पर मैं कुछ कुछ तुझसा हूँ ।
-कुमार
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