Monday, February 26, 2018

न जाने कब मोहब्बत कर आये हम



ये ज़िंदगानी, ये रवानी
ये महफ़िल, ये तन्हाई
सब तेरी ज़ुल्फ़ों पे वार आये हम
न जाने कब मोहब्बत कर आये हम ।

ये आँसू, ये गम
ये हंसी ठिठोली
तेरे होंठों पे छोड़ आये हम
न जाने कब मोहब्बत कर आये हम ।

ये अपने, ये पराये
ये नींद, ये सपने
तेरी आँखों मे छोड़ आये हम 
न जाने कब मोहब्बत कर आये हम ।

ये भूख, ये प्यास
थोड़ी जो थी तुझसे मिलने की आस
तेरी डोली पे वार आये हम 
न जाने कब मोहब्बत कर आये हम ।

-कुमार

बंजारा


यूँ ही रंग बिरंगे कमाते कमाते 
बेघर हो गए हैं घर आते जाते
घोंसला तो है पर ठिकाना नहीं 
अपने पराये हो गए हैं ठिकाना बनाते बनाते ।



समझते हैं बोली मेरी अब अनजान परिंदे भी 
खुद से अनजान हो गए हैं पहचान बनाते बनाते ।

सुना था जंजीरें टूटी थी सैनतालिस में गुलामी की,
फिर गुलाम हो गए हैं आजादी का जश्न मनाते मनाते ।

हुई सांझ, लौटे परिंदे अपनो के पास, थकान मिटाने को
हम भी शायद कभी लौटे घर प्यास अपनी भुझाने को ।

राह से किसी गुजरते हुए एक सौंधी सी महक आयी है
शायद किसी माँ ने अपने हाथों से अपनों के लिए रोटी पकाई है ।
परोसे जाएंगे हमे भी छपन भोग बड़ी सी थाल में, 
बैठे हैं हम भी उसी लम्हे की राह में ।

बंजारा हूँ आवारा सा, राही मैं अनजान राहों का ।

                                       -कुमार

कुछ दिन ओर लगेंगे







आगाज हुआ है अभी सफर का
मंजिल मिलने में अभी
कुछ दिन ओर लगेंगे ।

सपनों में देखी है एक परछाई
उसे हक़ीक़त बनने में अभी 
कुछ दिन ओर लगेंगे ।

मालूम है नाराज है तू मुझसे
ए-ज़िन्दगी, तुझे मनाने में अभी
कुछ दिन ओर लगेंगे ।

नमी आयी है इन हवाओं में
चातक की प्यास भुझने में अभी 
कुछ दिन ओर लगेंगे ।

सुनाई दी है अभी झंकार पायल की
मगर उसे दिल मे उतरने में अभी 
कुछ दिन और लगेंगे ।

-कुमार

पुराने पन्ने



कुछ चीज़ें मिलीं हैं तुम्हारी 
पुरानी किताब के पन्नों में 

कंधे पर सिर रख बिताये 
उन ढेर सारे घंटों में
शर्ट पर गिराई उन आंसुओं की बूँदों में 
तुम्हारी, खुशबू मिली है 
शर्ट के उन कंधों में, 
सुनो ! कुछ लिखावट मिली है तुम्हारी 
उन आखिरी पन्नों में ।

याद है तुम्हें 
लाइब्रेरी में पास बैठकर 
पन्ने पलटने के बहाने 
हाथ मेरा तुमसे टकराया था, 
बस  वही छुअन मिली है 
डायरी के गुलाबी पन्नों में 
सुनो ! कुछ चीज़ें मिली हैं तुम्हारी 
पुरानी किताब के पन्नों में ।

तुम्हारा दिया वो लाल गुलाब 
आज फिर होंठों से लगाया है 
वही कशिश मिली है 
आंसू टपक कर सिकुड़े उन पन्नों में 
सुनो ! कुछ चीज़ें मिली हैं तुम्हारी
पुरानी किताब के पन्नों में ।

शायरियों को घर मिला था 
जिन यादों के साये में 
उन्ही को बेदखल किया है 
अपने दिल के पन्नों में 
सुनो ! कुछ चीज़ें मिली हैं 
पुरानी किताब के पन्नों में ।

-कुमार