Thursday, September 17, 2015

जो मिलके सितारे बिछुड गए





जो मिलके सितारे बिछुड गए 
उसकी ये रात गवाही देती है,
करके तबाही जो निकल गए 
उन तूफानों कि गूँज सुनाई देती है |


महलों को वीराना करके चले गए ,
उन लोगों कि आहट सुनाई देती है |
कतरा-कतरा धुंधलाती यादों को
जो याद दिलाकर चले गए ,

उन यादों कि वो बात सुनाई देती है |


आशियाना जो अपना छोड़ गए ,
उन परिदों कि चहचाहट सुनाई देती है |
अपना बनाकर जो छोड़ गए ,
उन बेगानों कि तस्वीर दिखाई देती है |


साथ निभाकर कुछ पल का

जो तन्हा करके चले गए ,
साथ मे बीते उन लम्हों की
वो हंसी सुनाई देती है |


जो मिलके सितारे बिछुड़ गए 

उसकी ये रात गवाही देती है ,
करके तबाही जो निकल गए 
उन तूफानों की गूँज सुनाई देती है |


-कुमार  

भोर


उठ मुसाफिर भोर हुई अब, क्यूँ हार मान बैठा है

माना की आवाज़ नहीं है, समय के पदचापों में
वक़्त के आगे बेबस होकर, राजों को भी रंक होते देखा है
उठ मुसाफिर भोर हुई अब, क्यूँ हार मान बैठा है

गवाह है इतिहास हमारा, ऐसी अनगिनत गाथाओं का
जिसने, वीरों को समय के पहिये में, घुंघरू बांधते देखा है,
उठ मुसाफिर भोर हुई अब, क्यूँ हार मान बैठा है

है दर्द भरा दिल में जो तेरे, अश्कों में बह आने दे
इन अश्कों की बारिश में, बंजर को उपवन होते देखा है


उठ मुसाफिर भोर हुई अब, क्यूँ हार मान बैठा है

-कुमार